Monday, August 17, 2015

सड़क पर व्यंग्य की बतकही

वलेस मने कि व्यंग्य लेखक समिति की शुरुआत व्यंग्य से संबंधित चर्चा के लिये हुई। व्हाट्सएप मने कि क्या है यार यह अनुप्रयोग पर सुशील सिद्धार्थ द्वारा। इसमें हिन्दी साहित्य के लगभग सभी सक्रिय रचनाकार सम्मिलित हैं। व्यंग्य पर नियमित चर्चा होती है।  यह व्यंग्य है या नहीं के एसिड टेस्ट से शुरुआत होकर फ़िर अमिधा, लक्षणा  और व्यंजना की कसौटियों पर कसते हुये व्यंग्य का इम्तहान होता है। पास-फ़ेल की बात तो अलग लेकिन नियमित तौर पर एक-दो या अधिक भी व्यंग्य पर चर्चा होती है।

एक सुझाव कल दिया गया कि व्यंग्यकार अपना-अपना ब्लॉग भी बनायें। उसमें वे अपने व्यंग्य लेख पोस्ट करें ताकि अधिक से अधिक लोग पढ़ सकें। यह विचार इसलिये कि फ़ेसबुक और व्हाट्सएप जहां पर व्यंग्यकार अपने छपे हुये लेख साझा करते हैं वे बंद समूह हैं। जिन अखबारों में व्यंग्य छपते हैं वे अगले दिन या अधिक से अधिक अगले हफ़्ते/महीने नेट पर दिखते नहीं। इसलिये बढिया रहे कि सब लोग अपने लेख अपने ब्लॉग पर भी पोस्ट करें। इस क्रम में सुशील सिद्धार्थ का और सुभाष चन्दर जी का ब्लॉग बनाया जाना तय हुआ। सुशील जी का  ब्लॉग तो बन गया लेकिन सुभाष चन्दर जी के ब्लॉग में गड़बड़झाला यह हुआ कि उनका पहले से ही गड़बड़झाला नाम से ब्लॉग था। अब शायद वे पोस्ट करना शुरु करें।


आज प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य छपा नई दुनिया में- सड़क हैं तो गढ्ढे हैं। इसमें सड़क पर गढ्ढे की शाश्वत समस्या पर चिन्तन हुआ। इसमें सड़कों पर की दुर्दशा और कीचड़ और गन्दगी से लबरेज गढ्ढों के निर्माताओं, इंजीनियरों और ठेकेदारों की इज्जत करने का आह्वान किया गया है। यह भी कि इनको राष्ट्रीय प्रतिभा मानते हुये इनके समुचित सम्मान की व्यवस्था की जाये।

यह व्यंग्य अखबार में ही है। उनके ब्लॉग में अब तक आया नहीं। इसलिये जिसको पूरा व्यंग्य पढ़ना हो वो यहां पहुंचे।

 ’पीने पाले को पीने का बहाना चाहिये’ की तर्ज पर लिखने वाले को पढ़वाने का बहाना चाहिये। मौके का फ़ायदा उठाते हुये सुशील सिद्धार्थ जी ने अपना 'एक सड़क छाप चिन्तन' ’वलेस’ पर ठेल दिया। कुछ  लेख अच्छा होने  और बाकी वलेस के एडमिन होने के चलते लोगों ने लेख की जमकर तारीफ़ की। लेख का एक अंश आप भी देखें जरा:

’ सड़क तुम धन्य हो। तुमने ने जाने कितने नेताओं के शक्ति परीक्षण का सुख भोगा है। तुम्हारे चौराहों पर, मोडों पर ही पुलिस द्वारा धनवसूली का पावन दृश्य दिखता है। सड़क ! जब कर्फ़्यू में बूटों और लाठियों की ठक-ठक के अलावा सारी आवाजें दफ़्न हो जाती हैं तब तुम्हें तकलीफ़ तो नहीं होती। जब स्कूल जाते बच्चों को रौंदकर कोई तेज वाहन बेखटके भाग जाता है तब तुम्हारा दिल तो नहीं दहलता! तुम्हें चुस्त-दुरुस्त करने के नाम पर जब करोडों रुपये डकारने की भारतीय संस्कृति फ़लती-फ़ूलती  है तब तुम्हारी आत्मा में वेदमंत्र तो नहीं गूंजते। तुम्हारे किनारे बिजनेस की जगह ताड़कर जब कोई धर्मस्थान रातों रात प्रकट होता है तब तुम्हें पाकिस्तान की साजिश तो नहीं नजर आती। सड़क तुम सच्चे अर्थों में लोकतंत्र की गति का नमूना हो।’

यह लेख जो कि पन्द्रह साल पहले राष्ट्रीय सहारा में छपा था सुशील सिद्धार्थ के व्यंग्य संग्रह ’नारद की चिंता’  में संकलित है। यह संग्रह आन लाइन यहां पर उपलब्ध है। आप चाहें तो यहां से मंगाकर बाकी लेखों का भी आनन्द उठा सकते हैं। हमने जब मंगाई थी तब 271 पेज के 395 रुपये ठुके अब यह 296 की है। लगता है गलती तो नहीं की जल्दी मंगाकर। लेकिन यह सोचिये पहले न मंगाये तो आपको बताते कैसे इसके बारे में।

जब सड़क चिन्तन होने लगा तो कमलेश पाण्डेय जी ने सड़क निर्माण की प्रक्रिया बताई:

पन्द्रह मील लंबी एक सड़क बनानी हो, तो निर्माण प्रक्रिया के में निम्न लिखित चरण होते हैं:
1. एक छोर से निर्माण का प्रारम्भ
2. मध्य भाग तक सड़क तैयार और आरम्भिक छोर से मरम्मत कार्य का आरम्भ
3. सड़क पूरी तैयार, मरम्मत का कार्य मध्य भाग तक पहुंचना
4. मरम्मत कार्य का अंतिम छोर तक पहुंचना एवं आरम्भिक छोर से पुनर्मरम्मत का प्रारम्भ।
5. अंतिम चरण तक क्रिया अनंतकाल तक चलती है
 जहां भी कहीं किसी को सड़क पर गढ्ढा या गढ्ढे में सड़क दिखे समझा जाये कि वह सड़क कमलेश जी के फ़ार्मूले के हिसाब से बनी है। अभिषेक अवस्थी ने तो सवाल भी किया- कमलेश सर क्या आप PWD में थे?
पता चला कि यह लेख 22 वर्ष पहले धर्मयुग में छपा था। गनीमत रही कि किसी ने 25 साल पहले का लेख नहीं ठेला।

आलोक पुराणिक को एहसास है कि स्विस बैंक में रखी हुई चीजें सुरक्षित रहती हैं। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लगता है देश को लेकर कुछ ज्यादा ही भावुक हो गये और ’मुल्क को ही स्विस लाकर’  में रख आये। वे फ़रमाते हैं:

"वतन की राह में कौन सा नौजवान शहीद हो रहा है-सारे काबिल नौजवान अमेरिकन एंबेसी के बाहर अमेरिकन वीजा के लिए लगी लाइन में लगे हैं। हम इत्ते भर में खुश हो ले रहे हैं कि कोई भारतीय नौजवान अमेरिका की गूगल कंपनी की चीफ हो लिया या कोई भारतीय नौजवान अमेरिका की माइक्रोसाफ्ट कंपनी का चीफ हो लिया।

अमेरिका जाने की लाइन में लगे नौजवानों की तादाद बहुत ज्यादा है। जिन नौजवानों की नौकरी पुलिस या सेना में नहीं है, उनसे वतन पर शहादत की बात करो, तो जवाब मिलेगा कि शहादत का मतलब क्या होता है, समझ नहीं आया। आप इत्ती कड़ी उर्दू क्यों बोलते हैं, लीजिये पिज्जा खाइये और अमेरिकन एंबेसी के सामने वीजा की लाइन में लगिये।"
यहां परसाई जी की कहा याद आ गया- जब लोग देश का प्रापर चैनल नहीं पार कर पाते तो इंगलिश चैनल पार कर जाते हैं। प्रापर चैनल इंगलिश चैनल से ज्यादा चौड़ा है।

कुछ एक लाईना:
1. आतंकी धमाके में पाक-पंजाब के गृहमंत्री की मौत के बाद पाक-नेताओं ने बजरंगी भाईजान से कहा, इंडिया से लाकर पाक में छोड़ने का काम तुम कर चुके हो, अब इसका बदला चाहिए, अब हमें पाक से ले जाकर इंडिया में छोड़ो।- आलोक पुराणिक

2. UAE में मंदिर बनने की खबर सुनते ही आसाराम और राधे मां ने, वहां सत्संग के वास्ते, अपनी-अपनी अर्जियां मोदीजी को भिजवा दी हैं।- अंशु माली रस्तोगी

3.  पिछली सरकारें अरबों से इसलिए सम्बन्ध नहीं सुधार पाईं क्योंकि वो खरबों बनाने में लगी थी।- नीरज  बधबार

4.यदि किसी व्यंग्य लेख को पढते हुए होठ एक तिर्यक मुस्कान से खिंच न जायं तो समझिए वह व्यर्थ ही लिखा गया है.- डा. अरविन्द मिश्र
  पढते-पढते थक गये हों तो सुनिये सुशील सिद्धार्थ का व्यंग्य पाठयहां क्लिकियायें और भोपाल पहुंच जायें जहां कि सुशील जी अपना व्यंग्य पाठ करते हुये सुनाई और दिखाई दे रहे हैं। कहते हुये-  थक जाऊंगा तो पूंजीवाद की बारात में शहनाई कौन बजायेगा?


श्रद्धांजलि: पिछले दिनों वरिष्ठ व्यंग्यकार यज्ञ शर्मा जी कैंसर की बीमारी से जूझते हुये  निधन हो गया। ’मुंबइया भाषा में दुनिया की बात’ करने वाले यज्ञ शर्मा जी ’खाली-पीली’ स्तम्भ लिखते थे।  प्रख्यात व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी जी ने उनके साथ अपने संबंधों को याद करते हुये लिखा:


 यज्ञ शर्मा जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

मेरी पसंद: 
भ्रष्टाचार- बलात्कार- समाचार। रोज भ्रष्टाचार, रोज समाचार। रोज बलात्कार, रोज समाचार। खबरिया चैनल भर गएला है भ्रष्टाचार और बलात्कार से। ऐसा खबर सुन कर, क्या आपको नहीं लगता कि भ्रष्टाचार रोज हमारा थोबड़ा पर जूता मारता है। और, बलात्कार रोज हमारा इज्जत लूटता है। सुबह-दोपहर-शाम, जबी देखो बस ये ईच समाचार, भ्रष्टाचार- बलात्कार! मन तरस गया कोई अच्छा खबर सुनने को। लगता है देश में कुछ अच्छा बचा ईच नहीं है। जबसे दिल्ली में एक लड़की पर वो बलात्कार हुआ और जनता ने हंगामा किया, उसका बाद तो दिल्ली का बलात्कारी लोग जैसे बदला लेने पर उतर आया है। बार-बार बलात्कार हो रहेला है। किशोर, जवान, अधेड़ जो बी मिल जावे, वो औरत शिकार हो जाता है। बदमाश लोग ने चार-पांच साल का बच्ची तक को नहीं छोड़ा। दूसरा बाजू, भ्रष्टाचारी लोग ने टू-जी, हेलिकॉप्टर, कोयला कुछ बी नहीं छोड़ा। कोयला का घोटाला हुआ तो क्या किसी का मुंह काला हुआ? जी नहीं, सब डिटरजेंट से धुला नजर आ रहा है। अगर मुंह काला हुआ है, तो देश का हुआ है। भोत साल से देश का मुंह लगातार काला हो रहा है। अब तो देश मुंह साफ करने में बी घबराता है। कहीं मुंह पोंछा और किसी ने चेहरा नहीं पहचाना तो? उसका पास तो मुंह छिपाने को कोई जगह बी नहीं है। आपने कबी सोचा है, देश का पास अक्खा देश है, लेकिन ऐसा घर नहीं है, जिधर वो अपना मुंह छिपा सके।

जब से खबरिया चैनल चौबीस घंटा का हुआ है, एक ईच समाचार दिन में चौबीस बार देखना पड़ता है। बार-बार ऐसा समाचार देखना पड़ता है। बार-बार उसका बारे में विस्तार से जानकारी दिया जाता है। बार-बार सुन कर मन खराब होता है। पर, बेचारा चैनल वाला बी क्या करे? देश का पास कोई और समाचार ईच नहीं है। है तो बस वो ईच - भ्रष्टाचार या बलात्कार।

दिल बेचैन है कोई अच्छा खबर सुनने का वास्ते। मैंने एक खबरिया चैनल को बोला, 'कबी-कबी तो कोई अच्छा खबर सुना दिया करो।' चैनल बोला, 'तुम अच्छा खबर बता दो, हम सुना देंगा।' तब से मैं लगातार सोच रहा है, ये देश में कोई अच्छा खबर क्या हो सकता है ? अंग्रेजी में एक कहावत है 'नो न्यूज इज गुड न्यूज' - 'अगर कोई खबर नहीं है, तो ये अच्छा खबर है'। अगर, आप बीबीसी या सीएनएन देखता है, तो आपने देखा होएंगा कि उसको देख कर मन इतना खराब नहीं होता। वो लोग का पास अच्छा समाचार बी होता है। मेरे को लगता है अंग्रेजी का वो कहावत हिंदुस्तान का बारे में बनाया गया होएंगा।

क्या मन खराब करने वाला खबर देखना हमारा किस्मत में लिखा है? आखिर, कुछ तो ऐसा होवे जो हमारा मन बहलावे। अचानक मन में एक खयाल आया - काश कोई हीरोइन गर्भवती हो जावे। बड़ा हीरोइन का गर्भवती होना बी बड़ा समाचार होता है। सिरफ बड़ा ईच नहीं, सुंदर समाचार बी होता है। टीवी में हीरोइन का खूबसूरत, मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखेंगा। चेहरा पर एक अनोखा चमक होएंगा, मेक-अप का चमक नहीं, कुदरत का एक चमत्कार से पैदा होने वाला चमक।

आप सोचता होएंगा, हीरोइन का गर्भवती होने का समाचार ईच कायकू ? कारण, वो अकेला समाचार है जो नौ महीना तक पुराना नहीं होएंगा। फिर जब बच्चा पैदा होएंगा, तो वो और बी बड़ा समाचार होएंगा। एक मासूम-सा चेहरा टीवी स्क्रीन पर दिखाई देंगा। बच्चा अंगूठा बी चूसेंगा। अच्छा है, अंगूठा चूसेंगा। भ्रष्टाचार का माफिक देश का खून तो नहीं चूसेंगा। छोटा बच्चा देख कर सबका मन खुश हो जाता है। ये जितना भ्रष्टाचारी है, ये जबी बच्चा था, तो इनको देख कर बी लोग खुश होता होएंगा। जो लोग खुश होता था, क्या वो लोग को पता था कि ये बच्चा बड़ा हो कर क्या गुल खिलाएंगा? पता होता तो क्या वो लोग खुश होता? भ्रष्टाचारी लोग को बी ये बारे में सोचना चाहिए। कहा जाता है - बचपन में जिंदगी का सबसे जास्ती सुख मिलता है। भ्रष्टाचारी शायद ऐसा नहीं सोचता - वो लोग को सबसे जास्ती सुख भ्रष्टाचार में मिलता है। 


स्व. यज्ञ शर्मा

आज के लिये इतना ही। बाकी फ़िर कभी।

बताइये व्यंग्य चर्चा कैसी लगी?

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8 comments:

  1. आगाज झक्कास गुरु!
    बहुत मेहनत किए हो।

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  2. वाह।बहुत बढ़िया।

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  3. बहुत शानदार।

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. व्यंग्य चर्चा शानदार है । यह एक और उपयोगी कदम है

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  6. व्यंग्य चर्चा शानदार है । यह एक और उपयोगी कदम है

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